मान्यता है कि यहां भूत-प्रेत भाग जाते हैं
भीलवाडा का बंक्यारानी माता मंदिर अपने देश में कई मान्यताएं, परम्पराएँ और रीति-रिवाज हैं जिनका लोग सदियों से पालन करते हुए आ रहे हैं। कुछ लोगों के लिए यह अंध विश्वास है तो तो कुछ लोगों के लिए विश्वास। आज हम आपको ऐसी ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिससे संबन्धित मान्यता है कि वहाँ जाने से भूत-प्रेत भाग जाते हैं।
यह मंदिर राजस्थान का भीलवाड़ा का बंक्यारानी माता मंदिर है। मान्यता है कि इस मंदिर में आने से भूत-प्रेत से छुटकारा मिल जाता है। आप यहां जाएंगे तो आपको महिलाओं की चीखें सुनाई देंगी। भूत भगाने के लिए कहीं महिला को सीढ़ियों पर घसीटा जाता है तो कहीं ठंडे पानी से नहलाया जाता है। उनके बाल खींचे जाते हैं। मंदिर में सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ने लगती है। माँ के जयकारे गूंजने लगते हैं। बीच-बीच में महिलाओं की चीखें भी सुनाई देती हैं।
मंदिर के के गर्भगृह में बंक्यारानी माता
लोग उनकी पूजा करते नजर आएंगे। यहां भूत भगाने के लिए महिलाओं को सीढ़ियों पर उल्टा लिटाकर घसीटा जाता है। उन्हें लात-घूसों से पीटा जाता है। ठंडे पानी से नहलाया जाता है। मंदिर की परिक्रमा कराई जाती है। मंदिर से 2 किलोमीटर दूर एक कुंड है। कुंड तक जाने के लिए महिलाएं दोनों हाथ ऊपर उठाकर 2 किलोमीटर जाती हैं। कुंड की दीवारों पर लिखा है- कष्ट निवारण कुंड। इसी कुंड के जल से महिलाओं को नहलाया जाता है।
कुंड का पानी बहुत ठंडा होता है। रात से सुबह तक महिलाओं को ठंडे पानी से नहलाया जाता है। यहां रातभर भूत भगाने का कार्यक्रम चलता है। शनिवार को मंदिर में 500 से 1000 लोग आते हैं।
आसीन्द से 12 किमी दूर पहाड़ी पर मंदिर
भीलवाडा का बंक्यारानी माता मंदिर जिले के आसींद तहसील के माताजी खेड़ा में स्थित है। बंक्यारानी माता मंदिर आसींद से 12 किमी दूर आसींद-शाहपुरा मार्ग पर एक पहाड़ की चोटी पर बना है। यहां की हरियाली मनमोहक है। बंक्यारानी माता मंदिर के पास ही बालाजी का मंदिर है। नवरात्र में यहां मेला लगता है। शक्त स्थल पर वर्तमान में सरकार ने ट्रस्ट का गठन किया। इस मंदिर की महिमा पर ऑयज शॉप स्टोन, नाम की फिल्म भी बन चुकी है।
मान्यता: राक्षस का वध कर बांके गढ़ में प्रकट हुई थी बंक्यारानी
ऐसा कहा जाता है कि बंकिया माता बकेसुर राक्षस का वध कर बांके गढ़ में प्रकट हुई थीं। वहां से वह आकाश मार्ग से जा रही थीं। प्राचीन बदनोर प्रांत के आमेसर के जंगलों में बाल गोपाल पशु चरा रहे थे उन्हें वह दिखी तो वह चिल्ला उठे। पुकारने पर माता भवानी ने जमीन पर उतर आईं और पाषाण का रूप धारण कर लिया। आज उसी जगह मंदिर स्थित है। माँ की महिमा से जुड़ी कई कहानियाँ जनमानस में प्रचलित हैं।
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