भगवान गणेश को समर्पित तिलकुंद चतुर्थी बुधवार को शुभ संयोग में मनेगी
गणेशजी की विशेष पूजा हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ मास में काफी व्रत और त्योहार आते हैं। इसलिए धार्मिक दृष्टिकोण से यह महीना बहुत खास होता है। पंचांग के अनुसार, हर मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। ऐसे ही माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का व्रत पड़ रहा है। इस गणेश चतुर्थी को गणेश जयंती, माघी गणेशोत्सव, माघ विनायक चतुर्थी, वरद चतुर्थी और वरद तिलकुंद चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।
इस माह की वरद चतुर्थी काफी खास है। क्योंकि भगवान गणेश को समर्पित बुधवार यानी 25 जनवरी को पड़ने के साथ-साथ कई शुभ योग बन रहे हैं।
तिलकुंद चतुर्थी का व्रत किया जाता है
बुधवार को पड़ने से व्रत और गणेशजी की पूजा का शुभ फल और बढ़ जाएगा। इस दिन भगवान श्रीगणेश और चंद्रमा की पूजा की जाएगी। इस व्रत को करने से नौकरी और बिजनेस की परेशानियां दूर हो जाती हैं। मानसिक शांति भी मिलती है। घर में खुशहाली बढ़ती है।
दरअसल, माघी चतुर्थी पर पद्म और रवियोग बन रहे हैं। साथ ही बुधवार भी रहेगा। गणेश पुराण के मुताबिक इस वार को गणेश जी प्रकट हुए थे। वहीं, इस तिथि पर बृहस्पति भी खुद की राशि में रहेगा। ग्रह-योगों की शुभ स्थिति बनने से इस दिन किए गए व्रत और पूजा-पाठ का शुभ फल और बढ़ जाएगा।
अब बात करते हैं इस दिन दान का क्या महत्व है?
माघ महीना होने के कारण इस चतुर्थी तिथि पर दान का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान गणेश को तिल के लड्डूओं का भोग लगाया जाता है। इसके बाद प्रसाद के रूप में इन्हें बांटा जाता है। इनके अलावा जरूरतमंद लोगों को ऊनी कपड़े, कंबल और भोजन दिया जाता है। वहीं खासतौर से तिल से बनी खाने की चीजों का दान करना काफी फलदायी माना जाता है।
तिलकुंद चतुर्थी पर सुबह जल्दी नहाकर साफ-सुथरा वस्त्र धारण करें।
गणेशजी की विशेष पूजा इसके बाद व्रत का संकल्प लें। फिर पूजन करें। गणेश जी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं फिर फल, फूल, चावल, रौली, मौली चढ़ाएं। इसके बाद तिल अथवा तिल-गुड़ से बनी मिठाइयों और लड्डुओं का भोग लगाएं। फिर भगवान गणेश को धूप-दीप दर्शन करवाएं।
ऐसी मान्यता है कि इस चतुर्थी के दिन व्रत रखने और भगवान गणेश की पूजा करने से जहां सभी कष्ट दूर हो जाते हैं, वहीं इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति भी होती है। इस दिन तिल दान करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन गणेशजी को तिल के लड्डुओं का भोग लगाया जाता है। इसलिए इसे तिलकुंद चतुर्थी भी कहा जाता है।
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