दोष मुक्त माना गया है फुलेरा दूज के दिन
फुलेरा दूज हिंदू धर्म में खास मायने रखता है। दरअसल, फाल्गुन शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ही फुलेरा दूज कहा जाता है। आज आपको बताते हैं कि फुलेरा दूज का क्या महत्व है। इस दिन का त्योहार क्यों मनाया जाता है।
इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा की जाती है। ब्रज के मंदिरों में इस दिन सजावट देखते ही बनती है। पूरा वातावरण प्रेम के रस में भीग जाता है। इस दिन पर श्रीकृष्ण और राधा रानी को फूलों से सजाया जाता है और जमकर उन पर फूल बरसाए जाते हैं।
इस दिन पर मथुरा-वृंदावन भक्तिमय हो जाता है
आज के दिन पूरा मथुरा और वृंदावन भक्तिमय हो जाता है। श्री कृष्ण और राधा की भक्ति में लोग सराबोर हो उठते हैं। फूलों की महक से पूरा वातावरण सुगंधित हो उठता है। ऐसी मान्यता है कि फुलेरा दूज पर भगवान श्री कृष्ण ने होली खेलने की शुरुआत की थी। राधा और गोपियों के संग फूलों की होली खेली थी, तब से आज तक ब्रज में फुलेरा दूज पर बड़ी संख्या में भक्त राधा-कृष्ण के संग फूलों की होली खेलते हैं।
फुलेरा दूज फाल्गुन मास का पवित्र दिन होता है
इस दिन का काफी महत्व है। इसलिए इस दिन को पवित्र दिन माना जाता है। इस दिन आप कोई भी शुभ काम की शुरुआत कर सकते हैं। वहीं, इसे विवाह का अंतिम शुभ दिन माना जाता है। इस दिन बड़ी संख्या में शादियां होती हैं। क्योंकि इस दिन किसी भी मुहूर्त में शादी की जा सकती है।
फाग गीतों की शुरुआत हो जाती है
इस दिन होली पर्व की शुरुआत मानी जाती है। इस दिन से होली की तैयारियां, भजन, कीर्तन और फाग गीतों की तैयारियां होने लगती है। इस दिन मथुरा, वृंदावन और उत्तर भारत के श्री कृष्ण मंदिरों में विशेषकर मनाया जाता है।
फुलेरा दूज राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है
जैसा कि आपको मालूम है कि इस दिन फूलों से मंदिरों की साज-सज्जा की जाती है। राधा-कृष्ण के प्रेम के प्रतीक के रूप में भक्त इस दिन फूलों से होली खेलते हैं। इस दिन को रंगों का भी त्योहार कहा जाता है। सबसे बड़ी बात यह दिन दोष मुक्त होता है। इस दिन मंदिरों में बड़े पैमाने पर भजन-कीर्तन होता है। इस तरह इस दिन के साथ ही होली के रंगों की शुरुआत भी हो जाती है।
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