पर्व मनाने की परंपरा इस दिन शुरू हुई थी
नृसिंह द्वादशी की पूजा की जाती है होली से पहले। यह पूजा शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर की जाती है। सदियों से भगवान नृसिंह को पूजा करने की परंपरा चली आ रही है। भगवान नृसिंह भगवान विष्णु के अवतार हैं। इन्होंने ही अपने भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए उनके पिता हिरण्यकश्यप का वध किया था।
भगवना नृसिंह की पूजा होलिका दहन से तीन दिन पहले की जाती है। भगवान नृसिंह की पूजा करने से न केवल दुश्मनों पर जीत मिलती है बल्कि बीमारियों से भी मुक्ति मिलती है। सबसे खास बात- कुंडली में मौजूद हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं।
नृसिंह पूजा की तिथि और मुहूर्त ये है
फाल्गुन मास की द्वादशी तिथि यानी तीन मार्च को सुबह 9 बजकर 11 मिनट से शुरू होकर यह अगले दिन यानी 4 मार्च को सुबह 11 बजकर 43 मिनट तक रहेगा। सर्वार्थसिद्ध योग तीन मार्च को सुबह 6 बजकर 34 मिनट से दोपहर बाद 3 बजकर 43 तक रहेगा।
नृसिंह द्वादशी पर इस तरह करें विधिवत पूजा
नृसिंह द्वादशी के दिन विधिवत पूजा करें। सूर्योदय से पहले स्नान कर लें और पीले वस्त्र धारण कर लें। विष्णु जी को पीले रंग के फूल, माला, पीला चंदन, अक्षत, तिल, पीले रंग का भोग आदि लगा दें। शुद्ध जल के बाद दूध में हल्दी या केसर मिलाकर अभिषेक करें। केसर, अक्षत, पीले फूल, अबीर, गुलाल और पीला कपड़ा चढाने के बाद पंचमेवा और फलों का नैवेद्य लगाकर नारियल चढ़ाएं और धूप, दीप का दर्शन करवाकर आरती करें और विधिवत पूजन करें।
क्या महत्व है?
जैसा कि आप जानते हैं कि फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को नृसिंह द्वादशी मनाई जाती है। विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य और आधा शेर के शरीर में नृसिंह का अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था। उसी दिन से यह पर्व मनाया जा रहा है। भगवान विष्णु के इस स्वरूप ने प्रहलाद को तब वरदान दिया कि जो कोई इस दिन भगवान नृसिंह का स्मरण करते हुए, श्रद्धा से उनका व्रत और पूजन करेगा उसकी मनोकामनाएं पूरी होंगी। यही नहीं उसके रोग, दोष भी खत्म हो जाएंगे।
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