भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के महत्वपूर्ण स्तम्भ रहे नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में कायस्थ परिवार में हुआ था।
सुभाष चन्द्र बोस: आजादी के नायक उनके 7 भाई और 6 बहनें थीं। वह अपने माता-पिता की 9 वीं संतान थे। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे।
उन्हें राय बहादुर की उपाधि मिली थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिए उन्होंने जापान के सहयोग सेआज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था। जय हिन्द का नारा उन्होने ही दिया था।
“तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा”
यह नारा भी उनका था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब नेता जी ने जापान और जर्मनी से सहायता लेने का प्रयास किया था, तो ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों को 1941 में उन्हें खत्म करने का आदेश दिया था। नेता जी ने जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा, इम्फाल और कोहिमा में मोर्चा लिया।
21 अक्टूबर 1943 को बोस ने आज़ाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई, जिसे जर्मनी, जापान, फ़िलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशो ने मान्यता दी थी। जापान ने अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह इस अस्थायी सरकार को दे दिए। सुभाष उन द्वीपों में गए और उनका नया नामकरण किया।
सुभाषचंद्र की शिक्षा-दीक्षा
नेता जी सुभाषचंद्र ने स्कूल की पढाई कटक से ही पूरी की थी। इसके बाद आगे की पढाई के लिए वे कलकत्ता चले गए, वहां प्रेसीडेंसी कॉलेज से फिलॉसफी में बीए किया। इसी कॉलेज में एक अंग्रेज प्रोफेसर के द्वारा भारतीय छात्रों को सताए जाने पर नेता जी विरोध करते थे। उस समय जातिवाद का मुद्दा बहुत उठाया गया था। उनके पिता ने इंडियन सिविल सर्विस की तैयारी के लिए उन्हें इंग्लैंड भेजा। इस परीक्षा में उन्हें चौथा नंबर मिला। देश की आजादी के लिए 1921 में इंडियन सिविल सर्विस की नौकरी छोड कर वह भारत लौट आए।
राजनीतिक जीवन
आजादी के नायक: सुभाष चन्द्र बोस नेता जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। वह कलकत्ता में कांग्रेस पार्टी के नेता रहे और चितरंजन दास के नेतृत्व में काम करते थे। नेता जी चितरंजन दास को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। 1922 में चितरंजन दास ने मोतीलाल नेहरु के साथ कांग्रेस को छोड़ अपनी अलग पार्टी स्वराज पार्टी बना ली थी। 1928 में गुवाहाटी में कांग्रेस की बैठक में सदस्यों मतभेद उत्पन्न हुआ। सुभाषचंद्र और गाँधी जी के विचार बिल्कुल अलग थे।
नेता जी गाँधी जी की अहिंसावादी विचारधारा से सहमत नहीं थे, उनकी सोच नौजवान वाली थी, जो हिंसा में भी विश्वास रखते थे। 1939 में नेता जी ने राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के पद के लिए हुए चुनाव में गांधीजी के उम्मीदवार पट्टाभि सीताराम्या को हरा दिया था। इससे गांधीजी दुखी हो गए तो नेता जी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने खुद कांग्रेस छोड़ दी थी।
हिटलर से मुलाक़ात
1939 में द्वितीय विश्व युध्य चल रहा था, तब नेता जी ने वहां अपना रुख किया, वे पूरी दुनिया से मदद लेना चाहते थे, ताकि अंग्रेजो को उपर से दबाब पड़े और वे देश छोडकर चले जाएँ। इस बात का उन्हें बहुत अच्छा असर देखने को मिला, जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया। जेल में लगभग 2 हफ्तों तक उन्होंने ना खाना खाया ना पानी पीया। उनकी बिगड़ती हालत को देख कर देश में नौजवान उग्र होने लगे और उनकी रिहाई की मांग करने लगे।
तब सरकार ने उन्हें कलकत्ता में नजरबन्द कर रखा था। इस दौरान 1941 में नेता जी अपने भतीजे शिशिर की मदद से वहां से भाग निकले। सबसे पहले वे बिहार के गोमाह गए। वहां से वे पाकिस्तान के पेशावर जा पहुंचे। इसके बाद वे सोवियत संघ होते हुए, जर्मनी पहुँच गए, जहाँ वे वहां के शासक एडोल्फ हिटलर से मिले। उन्हें पता था कि हिटलर और पूरा जर्मनी का दुश्मन इंग्लैंड था, ब्रिटिशों से बदला लेने के लिए उन्होंने दुश्मन के दुश्मन को दोस्त बनाना उचित लगा। इसी दौरान उन्होंने ऑस्ट्रेलिया की एमिली से शादी कर ली थी। उनकी एक बेटी भी हुई अनीता बोस।
आजादी के लिए प्रयास
1943 में नेता जी जर्मनी छोड़ साउथ-ईस्ट एशिया मतलब जापान जा पहुंचे। यहाँ वे मोहन सिंह से मिले, जो उस समय आजाद हिन्द फ़ौज के प्रमुख थे। नेता जी ने मोहन सिंह व रास बिहारी बोस के साथ मिल कर ‘आजाद हिन्द फ़ौज’ का पुनर्गठन किया। इसके साथ ही नेता जी ‘आजाद हिन्द सरकार’ पार्टी भी बनाई।
1944 में नेता जी ने अपनी आजाद हिन्द फ़ौज को ‘ तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ नारा दिया। जो देश भर में नई क्रांति लेकर आया। नेता जी इंग्लैंड गए जहाँ वे ब्रिटिश लेबर पार्टी के अध्यक्ष व राजनीती मुखिया लोगों से मिले जाना उन्होंने भारत की आजादी और उसके भविष्य के बारे में बातचीत की। ब्रिटिशों को उन्होंने बहुत हद तक भारत छोड़ने के लिए मना भी लिया था।
सुभाष चन्द्र बोस : आजादी के नायक की मौत का रहस्य
1945 में जापान जाते समय नेता जी का विमान ताईवान में क्रेश हो गया, लेकिन उनकी बॉडी नहीं मिली। कुछ समय बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। भारत सरकार ने इस दुर्घटना पर बहुत सी जांच कमेटियाँ बनाई, लेकिन मौत की पुष्टि आज तक नहीं हुई।
1956 में शाह नवाज कमेटी नेता जी की मौत की गुथी सुलझाने जापान गई, लेकिन ताईवान ने कोई खास राजनीती रिश्ता ना होने से उनकी सरकार ने मदद नहीं की। 2006 में मुखर्जी कमीशन ने संसद में कहा, ‘नेता जी की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी, उनकी जो अस्थियाँ रेंकोजी मंदिर में रखी हैं, वो उनकी नहीं हैं।’ इस बात को भारत सरकार ने ख़ारिज कर दिया। इस तरह नेता जी कि मौत का रहस्य आज भी कायम है।
सुभाषचंद्र बोस से संबंधित रोचक तथ्य
-वर्ष 1942 में सुभाषचंद्र बोस हिटलर से मिले थे और भारत को आजाद करने का प्रस्ताव रखा, परंतु हिटलर को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी।
-वह भगत सिंह को फांसी से बचाना चाहते थे। उन्होंने गांधी जी से अंग्रेजों को किया हुआ वादा तोड़ने को भी कहा था, परंतु वे अपने उद्देश्य में नाकाम रहे।
-नेता जी ने ही महात्मा गांधी जी को सबसे पहले राष्ट्रपिता कह कर संबोधित किया था।
-वर्ष 1943 में ही आजाद हिंद बैंक ने 10 रुपए के सिक्के से लेकर 1 लाख रुपए के नोट जारी किए थे। एक लाख रुपए के नोट पर सुभाष चंद्र की तस्वीर थी।
-सुभाषचंद्र को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दो बार अध्यक्ष चुना गया था।
-सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु आज तक रहस्यमई बनी है।
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