माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है रथ सप्तमी
रथ सप्तमी जिसे सूर्य सप्तमी, अचला सप्तमी, भानु सप्तमी और आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जानते हैं। जैसे कि आप जानते हैं कि हिंदू धर्म में सूर्य उपासना का काफी महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी मनाया जाता है।
इस दिन सूर्य देव की पूजा करते हैं और उनको जल का अर्घ्य देते हैं। मान्यता है कि इस दिन अगर भक्त पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ पूजा करते हैं तो सूर्यदेव की कृपा से रोग दूर होता है, धन-धान्य में वृद्धि होती है। मान्यता है कि माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सूर्य देव अपने सात घोड़े वाले रथ पर सवार होकर प्रकट हुए थे और पूरी सृष्टि को प्रकाशित किया था। यही कारण है कि हर साल माघ मास ही शुक्ल सप्तमी को रथ सप्तमी मनाया जाता है।
रथ सप्तमी 28 जनवरी को मनाया जाता है।
इस दिन मत्स्य पुराण के मुताबिक पूरी तरह से भगवान सूर्य को समर्पित है। इस दिन किए गए स्नान, दान और पूजा-पाठ का हजार गुना ज्यादा शुभ फल मिलता है। इस बार ये 28 जनवरी को है। रथ सप्तमी को आरोग्य सप्तमी भी कहते हैं।
रथ सप्तमी पर सूर्योदय से पहले पवित्र स्नान करना जरूरी है। रथ सप्तमी पर तीर्थ और पवित्र नदियों में किया गया स्नान एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इसे केवल सूर्योदय के वक्त या उससे पहले करते हैं तो सबसे उत्तम होता है। सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की आराधना करने से आरोग्य, पुत्र और धन प्राप्ति होती है। ग्रंथों में सूर्य को आरोग्यदायक कहा गया है। सूर्य उपासना को रोग मुक्ति का रास्ता बताया गया है। इस कारण इसे आरोग्य सप्तमी भी कहा जाता है।
रथ सप्तमी का महत्व
अचला सप्तमी के दिन गंगा स्नान करने या पानी में गंगाजल डालकर स्नान करने और भगवान सूर्य की आराधना करने से जाने-अनजाने, मन, वचन पिछले जन्म के सात पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत की विधि और महत्व के बारे में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। इस व्रत को करने से घर-परिवार में हमेशा खुशियां बनी रहती हैं और हर संकट का निवारण अपने आप हो जाता है। माघ शुक्ल सप्तमी की कथा का जिक्र पुराणों में मिलता है।
ऋषि ने गुस्सा होकर साम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दिया था।
जिसके मुताबिक भगवान कृष्ण के बेटे साम्ब को अपने शरीर और ताकत पर बहुत अभिमान था। बहुत दिनों तक तप करके के बाद एक दिन दुर्वासा ऋषि श्रीकृष्ण से मिलने आए। कई दिनों के तप की वजह से वो शारीरिक तौर पर बहुत कमजोर हो गए थे। साम्ब ने उनकी कमजोरी का मजाक उड़ाया इससे उनका अपमान हुआ। इस कारण ऋषि ने गुस्सा होकर साम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दिया। अपने बेटे की परेशानी देख श्रीकृष्ण ने साम्ब को भगवान सूर्य की उपासना करने के लिए बोला। पिता की बात मानकर साम्ब ने सूर्य आराधना शुरू की, जिससे कुछ ही दिनों में बीमारी ठीक हो गई।
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