भारत की मिट्टी ने कई ऐसे पहलवानों को जन्म दिया, जिनहोने पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन किया।
भारतीय कुश्ती में पहलवानों को विश्व में पहचान दिलाने वाले महान पहलवान बोहत है इनमें से कुछ पहलवान अपने पूरे कैरियर में कभी हार का सामना नहीं किया। आज हम आपको भारतीय कुश्ती को विश्व में सम्मान दिलाने वाले कुछ ऐसे पहलवानों के बारे में बताने जा रहे हैं।
भारतीय कुश्ती में द ग्रेट गामा, जो कभी पराजित नहीं हुए
गामा पहलवान भारत की कुश्ती के पहले सुपरस्टार थे। उनका असली नाम गुलाम मोहम्मद बख्श था। वह अपने कैरियर में कभी पराजित नहीं हुए इसलिए उन्हें ग्रेट गामा के नाम से जाना जाता है। गामा का जन्म 22 मई 1878 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। हालांकि इनके जन्म को लेकर विवाद है। वह 10 वर्ष की उम्र में ही पहलवानी करने लगे थे।
उस समय दुनिया में कुश्ती में अमेरिका के जैविस्को का बहुत नाम था। गामा ने उसे भी परास्त कर दिया था। पूरी दुनिया में गामा को कोई नहीं हरा सका था। उन्हें वर्ल्ड चैंपियन का ख़िताब मिला था।
भारत-पाक बँटवारे के समय वह अपने परिवार के साथ लाहौर चले गए थे।
मई 1960 को लाहौर में ही उनकी मृत्यु हो गई थी। गामा ने 1895 में उन्होंने प्रसिद्ध पहलवान रहीम बख्श सुल्तानीवाला के साथ एक मुकाबला किया। यह दंगल कई घंटों तक चला। आखिर में दोनों में से किसी ने हार नहीं मानी और मुकाबला बराबरी पर रहा।
उस समय रहीम सुल्तानीवाला भारतीय कुश्ती के चैंपियन।1910 में जॉन बुल विश्व चैंपियनशिप के लिए लंदन गए। छोटे कद के कारण उन्हें चैंपियनशिप के नियमानुसार हिस्सा लेने नहीं दिया गया।
गामा पहलवान ने खुली चुनौती दी कि वे किसी भी पहलवान को हरा सकते हैं।
उस समय के एक लोकप्रिय अमेरिकी पहलवान बेंजामिन रोलर ने चुनौती को स्वीकार किया और भारतीय पहलवान ने उन्हें दो बार चित किया। अगले दिन विश्व चैंपियन स्टानिस्लॉस ज़बीस्ज़्को के साथ गामा का मुकाबला हुआ।
इस मुकाबले में गामा ने कुछ ही देर में ज़बीस्ज़्को को गिरा दिया और ज़बिस्ज़को ने भारतीय पहलवान की ताकत को कम करने के इरादे से रक्षात्मक स्थिति में बने रहे। आखिरकार दो घंटे 35 मिनट की कुश्ती के बाद ज़िबेस्को और गामा के बीच यह मुकाबला ड्रा हो गया।
लंदन दौरे पर गामा पहलवान ने कई जाने-माने पहलवानों को धूल चटाई और जब वे भारत लौटे तो उन्होंने मशहूर पहलवान रहीम सुल्तानीवाला को मात दी। इसके बाद उन्हें भारत के चैंपियन का ताज पहनाया गया। ऐसा माना जाता है कि अपने लगभग पांच दशक लंबे करियर में उन्होंने एक भी मुकाबला नहीं हारा।
भारतीय कुश्ती में केडी जाधव ने रचा इतिहास
भारतीय कुश्ती में पहलवानों खाशाबा दादासाहेब जाधव (केडी जाधव) भी जाने-माने पहलवान थे। महाराष्ट्र के रहने वाले केडी ने 1948 में लंदन में ओलिंपिक में डेब्यू किया था। उन्होंने पहली बार मैट पर कुश्ती की थी। चार साल बाद कड़ी ट्रेनिंग के बाद उन्होंने 1952 के हेलिन्सिकी ओलिंपिक में व्यक्तिगत तौर पर फ्री स्टाइल कुश्ती में कांस्य पदक हासिल जीता था।
इसी साल जाधव ने भारत के लिए दो पदक जीते थे। उन्होंने पहला हॉकी में गोल्ड मेडल और इसके बाद कुश्ती में ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया था। केडी जाधव को 1952 में भारत के अगले कुश्ती सुपरस्टार का ताज पहनाया गया। इसके बाद केडी जाधव ने हेलसिंकी में बैंटमवेट वर्ग में ओलंपिक कांस्य जीतकर इतिहास रच दिया। आजादी के बाद यह भारत का पहला व्यक्तिगत ओलिंपिक पदक था और अटलांटा 1996 खेलों तक यह रिकॉर्ड कायम रहा।
भारतीय कुश्ती में विश्व चैंपियनशिप में पहला पदक दिलाने वाले उदय चंद
उदय चंद स्वतंत्र भारत का प्रथम अर्जुन अवॉर्ड पाने वाले पहलवान हैं। उन्होंने 1961 में हुई वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप के दौरान देश के लिए 76 किलोग्राम फ्रीस्टाइल कुश्ती में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। इस भर वर्ग में कांस्य पदक जीतने वाले पहले भारतीय पहलवान थे।
हरियाणा के हिसार जिले के रहने वाले उदय चंद ने अपने कैरियर की शुरुआत इंडियन आर्मी से की थी। आर्मी में रहते हुए ही उन्होंने 1962 में हुए एशियम गेम्स में 2 सिल्वर मेडल जीते थे।
भारतीय कुश्ती में लगातार दो ओलिंपिक में पदक जीतने वाले सुशील कुमार
पहलवान सुशील कुमार ने बहुत कम संसाधनों में पहलवानी की ट्रेनिंग की थी। वह दुनिया के जाने-माने पहलानों में से एक है। सुशील 2010 और 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडलिस्ट हैं।
उन्होंने 2012 के लंदन ओलिंपिक में रजत पदक, 2008 के बीजिंग ओलिंपिक में कांस्य जीता और लगातार दो ओलिंपिक मुकाबलों में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने। सुशील को 2005 में अर्जुन अवॉर्ड, 2009 में राजीव गांधी खेल रत्न और 2011 में पद्म श्री से सम्मानित किए गए थे।
भारतीय कुश्ती में लंदन ओलिंपिक गेम्स में कांस्य पदक दिलाने वाले योगेश्वर दत्त
योगेश्वर दत्त भी दुनिया के मशहूर पहलवानों में शुमार हैं। हरियाणा के योगेश्वर दत्त ने महज 8 साल की उम्र से पहलवानी शुरू की थी। कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप के दौरान उन्होंने कई मेडल को अपने नाम किया है। 2006 में दोहा एशियाड में कांस्य पदक और 2012 के लंदन ओलिंपिक गेम्स में वह कांस्य पदक थे। उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।
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