इस पर्व के पीछे एक पिता-पुत्र की कथा जुड़ी हुई है
होली एक ऐसा त्योहार है जो पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसलिए इस पर्व को प्यार और एकता का प्रतीक माना गया है। एक-दूसरे को जब रंग और गुलाल लगाते हैं तो आपसी दूरियां और मनमुटाव मिट जाता है। भारत में होली खेलने के लिए तो लोग विदेशों से भी आते हैं।
खासकर ब्रज की होली तो सबसे मशहूर है। कृष्ण की नगरी मथुरा, वृंदावन में तो एक हफ्ते पहले से ही होली शुरू हो जाती है। यहां की होली सबसे मशहूर है। इस बार 7 मार्च को होलिका दहन और 8 मार्च को होली मनाया जाएगा। होली की पर्व तो सदियों से मनाया जा रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि होली क्यों मनाया जाता है और होली से एक दिन पहले होलिका दहन क्यों किया जाता है। इस बारे में आज हम जानेंगे।
हिरण्यकश्यप से जुड़ी है होली की कथा
होली मनाने के पीछे एक बहुत ही चर्चित प्रसंग है। दरअसल, हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा हुआ करता था। एक बार उसने अमरत्व का वरदान पाने का सोचा। इसके लिए उसने ब्रह्माजी की कई वर्षों तक कठिन तपस्या की। ब्रह्माजी आखिरकार उसकी तपस्या से खुश हो गए और हिरण्यकश्यप को दर्शन दिए।
उन्होंने हिरण्यकश्यप से वरदान मांगने को कहा। हिरण्यकश्यप ने वरदान मांगा कि संसार का कोई भी देवी-देवता, जीव-जन्तु, मनुष्य या असुर उसे न मार सके। यही नहीं उसने यह भी मांगा कि वह न वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न घर से बाहर। उसकी कोई अस्त्र-शस्त्र भी मौत न हो।
हिरण्यकश्यप के घर लिया प्रहलाद ने जन्म
ब्रह्माजी ने उसे यह वरादन दे दिया। वरदान पाकर हिरण्यकश्यप घमंड से चूर हो गया। इसके बाद उसने अत्याचार करना शुरू कर दिया। सभी से जबरन अपनी पूजा करवाने लगा। इसी बीच हिरण्यकश्यप के घर पुत्र का जन्म हुआ। उसने अपने पुत्र का नाम प्रहलाद रखा। प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त निकला। इस कारण भगवान विष्णु की भी काफी उस पर कृपा रहती थी।
हिरण्यकश्यप ने बेटे को कहा- मेरे अलावा किसी की पूजा न करे
हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रहलाद को भी आदेश दिया कि वह मेरे अलावा किसी और की पूजा न करे। पर प्रहालाद नहीं माना। अब हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को जान से मारने का हर संभव प्रयास करने लगा। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह हर बार बच जाता।
प्रहलाद को मारने के लिए बहन होलिका से मदद मांगी
हिरण्यकश्यप ने आखिरकार अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। बहन ने प्रहलाद को जलाकर मारने की योजना बनाई। दरअसल, होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था। होलिका को एक ऐसी चादर मिली हुई थी जिसे ओढ़कर वह आग में नहीं जल सकती थी। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। होलिका ने प्रहलाद को गोद में उठाकर आग में बैठ गई। तभी भगवान की कृपा से बहुत तेज आंधी चली और वह चादर उड़कर बालक प्रहलाद पर आ गई और वह जलकर भस्म हो गई।
इसके बाद हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और खंभे से निकल कर गोधूली की बेला में (जब न सुबह होती है और न शाम) दरवाजे की चौखट पर बैठकर हिरण्यकश्यप को अपने नाखूनों से मार डाला। इस तरह बुराई का अंत हो गया। तभी से होली और होलिका दहन का पर्व मनाया जाने लगा।
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